*दुआएं देने वाला कभी खाली नहीं रहता - बीके रुपेश भाई*
30 अक्टूबर2025, बिलासपुर। जब हम किसी को शुभभाव और शुभकामनाएं देते हैं, तो वह हमारे अपने जीवन का भी कल्याण करती हैं। दुआएं देने से न केवल संबंधों में मिठास आती है बल्कि आत्मा भी हल्की, प्रसन्न और शक्तिशाली बनती है।उक्त व्यक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बिलासपुर की मुख्य शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन में ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय माउंट आबू से पधारे राजयोगी बी.के. रुपेश भाई ने कहा। बीके रूपेश भाई जी ने कहा कि आज की दुनिया में सबसे बड़ी कमी है — दुआओं की शक्ति की पहचान की कमी। हर आत्मा मूल रूप से शांत, प्रेम स्वरूप और पवित्र है। परंतु जब क्रोध, ईर्ष्या या कटुता के भाव में आ जाते हैं, तो अपनी ही ऊर्जा को कम कर देते हैं। इसके विपरीत, जब हम हर आत्मा को उनके मूल स्वरूप में देखते हुए उन्हें दुआ देते हैं — चाहे वह हमारे प्रति कैसी भी भावना रखे — तब हम सच्चे अर्थों में ईश्वर के समान कर्म करते हैं। जब मन में कोई के लिए दुआ निकलती है, तो वह केवल शब्द नहीं होते, वह एक प्रकंपन है जो ब्रह्मांड में फैलता है और लौटकर हमें ही सुख-शांति का अनुभव कराता है।
उन्होंने यह भी बताया कि राजयोग ऐसा माध्यम है जिससे हम परमपिता परमात्मा से शक्तियां लेकर स्वयं को इतना भरपूर बना सकते हैं कि हमारी दृष्टि और वाणी से सदा शुभभाव और दुआएं ही प्रवाहित हों। उन्होंने कई उदाहरणों के माध्यम से बताया कि कैसे छोटी-छोटी परिस्थितियों में भी दुआएं देना हमारे कर्मों को श्रेष्ठ बनाता है — जैसे किसी के गलती करने पर भी क्षमा भाव से देखना, आलोचना के स्थान पर समझदारी से सहयोग देना, या किसी के दुःख में उन्हें सच्चे मन से शुभकामना भेजना।
बी.के. रुपेश भाई ने यह भी बताया कि आज हर घर में “दुआओं का वातावरण” बनाना आवश्यक है। जब घर के सदस्य एक-दूसरे को शुभभाव से देखें, तो उस घर में स्वतः ही सुख-शांति और समृद्धि आती है। उन्होंने कहा कि जो आत्मा दूसरों के लिए दुआएं रखती है, वह स्वयं ईश्वर की दुआओं की पात्र बन जाती है।
सेवाकेन्द्र संचालिका बीके स्वाति दीदी ने कहा कि नि:स्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा करने वाले ही सफलता मूर्त हैं। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य किसी भी कार्य में स्वार्थ, दिखावा या प्रतिफल की अपेक्षा छोड़ देता है और केवल परमात्मा के प्रति प्रेमभाव से कार्य करता है, तब वही सेवा सच्चे अर्थों में सफल होती है। ईश्वरीय सेवा में निष्ठा और शुद्ध भावना ही मुख्य पूंजी है। दीदी ने आगे कहा कि हमें सुदामा की तरह ईश्वरीय कार्य में अपनी चावल मुट्ठी अवश्य लगानी चाहिए। भले वह छोटी प्रतीत हो, परंतु जब भावना सच्ची हो, तो वह योगदान अनेक गुना फलदायी बन जाता है। परमात्मा भावना को देखते है, मात्रा को नहीं। सेवा में लगाई गई हर छोटी कोशिश, हर सच्चा संकल्प, शुभ भावना ही सफलता की सीढ़ी बनती है।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में ब्रह्माकुमारीज़ के भाई-बहनें उपस्थित रहे। अंत में बीके रुपेश भाई एवं बीके स्वाति दीदी ने सभी को भोग वितरित किया।
ईश्वरीय सेवा में,
बीके स्वाति
राजयोग भवन, बिलासपुर