*दीपावली आत्मिक दीप जलाने का पर्व – बीके स्वाति दीदी*
19 अक्तूबर 2025, बिलासपुर।
दीपावली से एक दिन पूर्व आने वाली छोटी दीपावली, जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है, अपने भीतर अत्यंत गहरा आध्यात्मिक संदेश समेटे हुए है। यह केवल स्नान, दीप जलाने या रूप-सौंदर्य का दिन नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण और अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का प्रतीक पर्व है।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर की मुख्य संस्था टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन की संचालिका बीके स्वाति दीदी ने बताया कि इस दिन का वास्तविक अर्थ है — मनुष्य के भीतर बसे अंधकार का अंत और आत्मा के दिव्य रूप का पुनर्जागरण।
दीदी ने कहा कि पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान ने नरकासुर का वध किया था, परंतु मनुष्य के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकार ही आज के समय के नरकासुर हैं, जिन्होंने आत्मा की पवित्रता और शांति को बंदी बना लिया है। जब आत्मा ईश्वर पिता शिव से ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करती है, तो वह इन विकारों का अंत कर सच्चे सुख और स्वर्ग की अनुभूति करती है। दीदी ने आगे बताया कि रूप चौदस का संबंध बाहरी सौंदर्य से नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मिक रूप से है। जब आत्मा ईश्वर की स्मृति में स्थित होकर अपने मूल गुण — शांति, प्रेम, पवित्रता, आनंद और ज्ञान — को पुनः जाग्रत करती है, तब उसके चेहरे पर स्वाभाविक रूप से एक दिव्य आभा झलकने लगती है। यही है सच्चा रूप सौंदर्य — आत्मा का रूपवान बनना।
दीदी ने कहा कि दीपक जलाना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रतीक है। वास्तविक दीप वह है जो हम अपने भीतर जलाते हैं — ज्ञान, प्रेम और ईश्वर-स्मृति का दीपक। जब यह दीप प्रज्वलित होता है, तब मन का अंधकार अपने आप मिट जाता है और जीवन में सच्चा उजियारा फैल जाता है।
ईश्वरीय सेवा में,
बीके स्वाति
राजयोग भवन, बिलासपुर