*बेमेतरा:- सपाद लक्षेश्वरधाम में द्वितीय दिव्य चतुर्मास्य का भव्य समापन*

*बेमेतरा:- सपाद लक्षेश्वरधाम में द्वितीय दिव्य चतुर्मास्य का भव्य समापन*

*बेमेतरा:- सपाद लक्षेश्वरधाम में द्वितीय दिव्य चतुर्मास्य का भव्य समापन*
*बेमेतरा:- सपाद लक्षेश्वरधाम में द्वितीय दिव्य चतुर्मास्य का भव्य समापन*

*श्रद्धा और समर्पण ही ईश्वर प्राप्ति का एक मात्र साधन स्वामी ज्योतिर्मयानन्द महराज*

*मेघू राणा बेमेतरा* :- ऐतिहासिक एवं पावन स्थल सपाद लक्षेश्वरधाम में द्वितीय दिव्य चतुर्मास्य अपने अंतिम पड़ाव में पहुँच गया है। इस पावन अवसर पर धर्म, अध्यात्म और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला।

इस चतुर्मास्य के अंतर्गत दण्डी स्वामी श्रीमज्जोतिर्मयानंद जी महाराज प्रतिदिन श्रद्धालुओं को पद्मपुराण की कथा सुनाते रहे। उनकी अमृतमयी वाणी से धर्म, नीति और जीवनोपयोगी संदेश प्राप्त कर श्रोतागण भावविभोर होते रहे। कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि धर्म की रक्षा करने वाला सदा ईश्वर की कृपा का अधिकारी होता है।

कार्यक्रम में मां भद्रकाली जिला मानस संघ बेमेतरा का विशेष योगदान रहा। संघ की ओर से प्रतिदिन दो मानस मंडलियों द्वारा हृदयस्पर्शी मानस गायन प्रस्तुत किया गया, जिसने उपस्थित श्रद्धालुओं को भक्ति रस में डुबो दिया। अब तक लगभग 120 मानस मण्डलियों ने प्रस्तुति दी है।

*निर्माणाधीन सवा लाख शिवलिंग मंदिर बना आस्था का केंद्र*
सपाद लक्षेश्वरधाम वर्तमान में दण्डी स्वामी श्रीमज्जोतिर्मयानंद जी के नेतृत्व में चल रहे सवा लाख शिवलिंग मंदिर निर्माण के लिए भी विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है। मंदिर निर्माण में निरंतर भक्त बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही है और देश व विदेश से भी श्रद्धालु इस दिव्य कार्य में अपनी सहभागिता निभा रहे हैं।

स्वामी श्री ने बताया कि इस मंदिर में प्रत्येक श्रद्धालु को अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु अपने नाम से शिवलिंग स्थापित करने का अवसर प्राप्त है। इस अद्वितीय धार्मिक कार्य में सम्मिलित होकर श्रद्धालु न केवल अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए योगदान दे सकते हैं, बल्कि आगामी पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य आध्यात्मिक धरोहर भी छोड़ सकते हैं।

*आध्यात्मिकता और संस्कृति का संगम*
सपाद लक्षेश्वरधाम में चल रहे चतुर्मास्य ने न केवल श्रद्धालुओं को धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान की, बल्कि यहाँ की भव्यता और आस्था ने क्षेत्र को एक धार्मिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन, कथा श्रवण और मानस मंडलियों के मधुर गायन का आनंद लेने पहुँच रहे हैं।

इस अवसर पर स्वामी श्री ने सभी भक्तों से कहा कि – “धर्म की साधना केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। शिवलिंग स्थापना का कार्य हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा का प्रतीक है।”

कार्यक्रम में क्षेत्र के अनेक गणमान्य नागरिक, भक्तगण और संतजन उपस्थित रहे। श्रद्धालुओं ने संकल्प लिया कि वे धर्म, संस्कृति और समाज सेवा में सदैव सक्रिय रहकर जीवन को सार्थक बनाएंगे।

Ads Atas Artikel

Ads Atas Artikel 1

Ads Center 2

Ads Center 3