अक्षय तृतीया पर खरोरा अंचल में अक्ती तिहार की अनोखी परंपरा – बच्चों ने कराया पुतरा-पुतरी का विवाह
अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर छत्तीसगढ़ के खरोरा अंचल में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ अक्ती तिहार मनाया गया। इस विशेष अवसर पर स्थानीय बच्चों ने मिट्टी के पुतरा-पुतरी (पुतला-पुतली) का विवाह रचाकर एक बार फिर इस सांस्कृतिक परंपरा को जीवंत कर दिया। यह आयोजन न सिर्फ मनोरंजन का माध्यम बना, बल्कि बच्चों को सामाजिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक मूल्यों की गहरी समझ भी प्रदान की। खरोरा के विभिन्न गांवों में बच्चों ने आपस में मिलकर छोटे-छोटे मंडप बनाए, जिनमें विवाह की सभी रस्में पूरी की गईं। मिट्टी से बने पुतरा और पुतरी को पारंपरिक वस्त्रों, गहनों और सुंदर सजावट से सजाया गया। विवाह समारोह के दौरान बच्चों ने पारंपरिक गीत गाए, फेरे दिलवाए और माला बदलवाकर विवाह की रस्में पूरी कीं। इस पूरे आयोजन में न सिर्फ बच्चे बल्कि उनके परिवारजन भी उत्साहपूर्वक शामिल हुए। विवाह के बाद बच्चों ने सामूहिक भोज किया और पारंपरिक व्यंजनों के साथ आनंदपूर्वक उत्सव मनाया।
यह परंपरा अक्षय तृतीया के दिन विशेष रूप से निभाई जाती है, जिसे छत्तीसगढ़ में अक्ती तिहार के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसे विवाह, गृह प्रवेश, भूमि पूजन और अन्य शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। खरोरा अंचल में इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने का उद्देश्य बच्चों में सांस्कृतिक चेतना को बढ़ावा देना और उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ना है। पुतरा-पुतरी के विवाह के माध्यम से बच्चे विवाह की परंपराओं को खेल-खेल में समझते हैं और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति सजग बनते हैं। खरोरा अंचल में वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी बच्चों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। मिट्टी के पुतलों का यह विवाह आयोजन न केवल संस्कृति के संरक्षण का माध्यम है, बल्कि सामाजिक एकता, बाल मनोविज्ञान और पारंपरिक मूल्यों की शिक्षा का भी सशक्त प्रतीक है। अक्षय तृतीया पर खरोरा की धरती पर गूंजते बच्चों के स्वर और उनकी मुस्कानें इस बात का प्रमाण हैं कि यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत और महत्वपूर्ण है जितनी सदियों पहले थी।