देवी - देवताओं के नाम पर पशुबलि अनुचित - संत रामबालकदास जी
धर्म के नाम पर निरपराध मूक पशुओं की निर्दयतापूर्वक हत्या करना सर्वथा अनुचित है। सनातन धर्म के किसी भी ग्रंथ में निरीह पशु की हत्या का उल्लेख नहीं है। अपनी स्वार्थसिद्धि, मनोकामका पूर्ति या जीभ के स्वाद के लिये जीव हत्या कैसे जायज हो सकती है।
पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में सिद्धि माता मंदिर सण्डी में होली के समय दिये जाने वाले हजारों पशुओं की बलि पर संत ने कहा कि ऐसे पाप कर्म के बदले सुख, धन - दौलत, संतान या अन्य वांछित मुरादें पूरी नहीं होती बल्कि ऐसा कुकर्म करने वाले पाप के भागीदार बन जाते हैं। बाबाजी ने कहा बड़े दुख और दुर्भाग्य की बात है कि स्वयं को शिक्षित, धार्मिक मानने वाले लोग भी पशुओं की हत्या करते हैं। बुद्ध और महावीर की अहिंसा की इस धरती को निरीह जीवों के खून से अपवित्र किया जाता है। गाॅव - गाॅव में मानस मण्डलियाॅ भगवान के चरित्रों का बखान कर रही हैं। गायत्री परिवार, जैन संगठना, विहिप, बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी अनेक संस्थायें निरंतर समाज में सुचिता लाने का प्रयास कर रही हैं इसके बावजूद पशु बलि कुप्रथा पूरी तरह बंद नहीं हो पा रही है। संत जी ने कहा भगवान वेदव्यास ने भगवद्गीता में कहा है कि जो विधि विरूद्ध पशुओं की बलि देकर भूत प्रेत की उपासना में लग जाये वह पशुओं से भी गया बीता और नरकगामी है। बलि का वास्तविक अर्थ है बलिदान, बलैया, समर्पण जिसका गलत अर्थ निकाला गया। बाबा जी ने कहा कि यह बात विचारणीय है कि जिसे हम जगत्जननी अर्थात सारे जगत की माता कहते हैं उस जगत में पशु - पक्षी भी तो माता की ही संतानें हैं और कोई माता अपनी ही संतान की बलि पर कैसे प्रसन्न हो सकती है। बाबा जी ने आव्हान किया कि पशुओं की निर्मम हत्या कर पाप के भागी न बनें बल्कि ऐसे निरीह पशुओं का संरक्षण करें।