हरेली पर्व पर विशेष:चिलमगोटा गांव के 160 से ज्यादा घरों में गेड़ी बनाकर ग्रामीण करते हैं नृत्य
आज हरेली का पर्व है। जिसे छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार माना जाता है। इस पर्व में गेड़ी नृत्य करने की परंपरा है। हालांकि आधुनिकता के दौर में अब यह परंपरा धीरे-धीरे अधिकांश स्थानों में विलुप्त होती जा रही है, तो कहीं औपचारिकता निभाने कुछ गांवों में एक-दो लोग गेड़ी बनाकर इसमें चलते या नृत्य करते नजर आते हैं। लेकिन जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर लगभग दो हजार की जनसंख्या वाले चिलमगोटा गांव के 300 में से 160 से ज्यादा घरों में गेड़ी बनाई जाती है, जिसके बाद बच्चे से लेकर बड़े, बुजुर्ग नृत्य कर परंपरा निभाते हैं। यहां के स्कूली बच्चे स्वेच्छा से गेड़ी नृत्य सीखते है।
इसके अलावा यहां एक संस्था भी है, जिसमें जुड़े लोग गेड़ी नृत्य से पारंगत होकर दूसरों को भी सिखा रहे हैं। इस गांव में छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बचाने व लुप्त हो रही परंपरा को सहेजने विशेष पहल हो रही है। यहां जिले का एकमात्र गेड़ी नृत्य दल है। जिसे 13 साल पहले शिक्षक सुभाष बेलचंदन ने स्कूली बच्चों के माध्यम से तैयार किया था। जिसमें आज युवा वर्ग भी जुड़ चुके हैं। हरेली पर्व पर पारंपरिक कृषि यंत्रों व गेड़ी की पूजा के बाद छत्तीसगढ़ी व्यंजन चीला, गुलगुला भजिया, ठेठरी, खुरमी का प्रसाद बांटा जाएगा।
संस्था में जुड़े हैं 20 लोग: संस्था में जितेन्द्र साहू, मोरध्वज इस्दा, सिवार्थ देशमुख सहित 20 लोग जुड़े है। बेहतर प्रस्तुति पर कई अवार्ड व सम्मान मिल चुके हैं। जिसमें धरती पुत्र सम्मान, कुर्मी समाज से दाऊ ढाल सिंह दिल्लीवार सम्मान, छग क्रान्ति सेना की ओर से माटी पुत्र सम्मान प्रमुख है।
एक अंतरराष्ट्रीय मंच, तीन महोत्सव में दे चुके प्रस्तुति
चिलमगोटा दल से जुड़े लोग गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति इंटरनेशनल मंच गुवाहाटी, 3 लोककला महोत्सव औंराभाठा, भिलाई सहित छत्तीसगढ़ सहित मध्यप्रदेश के कई बड़े मंचों पर दे चुके हैं। स्थानीय स्तर पर भी प्रस्तुति देते आ रहे हैं। वनांचल गेड़ी नृत्य दल के कारण ही चिलम गोटा गांव की पहचान जिले सहित देशभर में है। कांग्रेस की सत्ता आने के बाद गेड़ी नृत्य को महत्व दिया गया, तब दल के कलाकारों को सीएम हाउस में नृत्य करने आमंत्रित किया गया था।
बच्चों को गेड़ी नृत्य करते देख शिक्षक ने सिखाया
दुर्गीटोला के शिक्षक जितेंद्र साहू ने बताया कि 14 साल पहले परंपरा को सहेजने की शुरुआत शिक्षक सुभाष बेलचंदन ने की थी। जब उनकी पोस्टिंग चिलमगोटा में हुई थी, तब हरेली के दिन उन्होंने देखा कि गांव के कुछ बच्चे कीचड़ में गेड़ी नृत्य कर रहे थे। बच्चों से उन्होंने कहा मैं आप लोगों को गेड़ी नृत्य और अच्छे से सिखाऊंगा। फिर पढ़ाई के साथ गेड़ी नृत्य का भी प्रशिक्षण दिया गया। एक साल पहले कोरोना के कारण बेलचंदन की मौत हुई थी।