नारी शक्ति को नमन. उषा प्रशांत क्षीरसागर अपने विचार साझा करते है बताया की
आदि शक्ति माँ दुर्गा के नौ अवतारों में से दूसरे अवतार को, माता ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। देवी के इस अवतार की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। मां का नाम 'ब्रह्मचारिणी' दो शब्द 'ब्रह्म' और 'चारिणी' से मिलकर बना है। जहां 'ब्रह्म' का अर्थ है तपस्या, वहीं 'चारिणी' का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात, ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ है, "तप का आचरण करने वाली"। महादेव को अपने पति के रूप में पाने के लिए की गई कठोर तपस्या के कारण ही देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का आविर्भाव हुआ था।नवरात्रि के दूसरे दिन मां बह्मचारिणी की पूजा का विधान है। मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की विधि-विधान से पूजा करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है और कार्यों में सफलतामां ब्रह्मचारिणी की कृपा का महत्व
जो भक्त मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते हैं, उन्हें साधना और तप का अद्भुत फल प्राप्त होता है। इनकी आराधना से त्याग, वैराग्य, संयम, सदाचार जैसे गुण विकसित होते हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साधक अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता। मां की कृपा से जीवन में विजय और सिद्धि प्राप्त होती है। साथ ही, इच्छाओं और लालसाओं से मुक्ति के लिए भी इस देवी का ध्यान अत्यंत फलदायी माना गया है।
देवी ब्रह्मचारिणी का जन्म और तपस्या
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद नारदजी के उपदेश से उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। एक हज़ार वर्षों तक फल और मूल पर जीवन व्यतीत किया, सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्भर रहीं और कई वर्षों तक निर्जल व निराहार तपस्या करती रहीं। वर्षों तक बेलपत्र खाकर और फिर उन्हें भी त्यागकर उन्होंने कठिन साधना की। इसी कारण उनका नाम ‘अर्पणा’ और ‘उमा’ भी पड़ा।मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र है "ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः।' उनकी पूजा के दौरान इसका जप जरूर करें। 'या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः" मंत्र का जाप करना भी शुभ माना जाता है।