*संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की आत्मा : धर्मेंद्र कुमार श्रवण*
बालोद जिला के आदिवासी विकास खंड के वनांचल विद्यालय सेजस खलारी में संस्कृत भाषा सप्ताह दिवस मनाया गया जिसमें गणित के व्याख्याता राज्यपाल पुरस्कृत धर्मेंद्र कुमार श्रवण ने संस्कृत भाषा सप्ताह दिवस के भव्य आयोजन में उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि *संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की आत्मा* हमारे प्राचीनतम संस्कृत भाषा के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार से जुड़ा हुआ है। संस्कृत भाषा का संरक्षण विद्यार्थियों और समाज में संस्कृत के प्रति रुचि जागृतकर इस देवों की भाषा को जीवित रखना। संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार करते हुए विद्यालय, महाविद्यालय एवं सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से संस्कृत को जन-जन तक पहुँचाना।
भारतीय संस्कृति से परिचय कराते हुए कहा कि संस्कृत श्लोकों, कहानियों, नाट्य, गीत और भाषणों के माध्यम से भारत की गौरवशाली संस्कृति का अनुभव कराना। नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देवों की भाषा संस्कृत साहित्य में निहित आदर्शों, उपदेशों और मूल्यों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देना। विद्यार्थियों में भाषा-प्रेम जागृत करना हमारा मुख्य ध्येय है कि प्रतियोगिताओं, वाद-विवाद, सेमीनार , चित्रकला, रंगोली, पोस्टर, प्रश्नोत्तरी और नाटकों के माध्यम से विद्यार्थियों में संस्कृत के प्रति आकर्षण बढ़ाना।
भाषा का व्यावहारिक प्रयोग के माध्यम से बोलचाल और लेखन में संस्कृत का प्रयोग कराना, ताकि यह केवल पाठ्यपुस्तक तक सीमित न रहे।
*विद्यार्थियों को बताए सफलता के पांच मूल मंत्र*
संस्कृत के बहुत ही प्रचलित श्लोक का वाचन करते हुए कहा कि.. अपने समय में जब दसवीं कक्षा में सन् 1992-93 में अध्ययन-अध्यापन करते थे उस विचार को आत्मसात करते हुए अपनी बात को रखने का बहुत सुंदर प्रयास किया..
*काकचेष्टा वको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।*
*अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्॥*
हिंदी अनुवाद किया गया
पहला मंत्र *काकचेष्टा* कौवे की तरह चतुर बनना अर्थात् विद्यार्थी भी सदैव प्रयत्नशील और सक्रिय रहते हुए सजगतापूर्वक चतुराई व होशियारी से काम करते हुए अपने भाविषय को सँवार सकते हैं हमेशा चतुर बनने की नसीहत दी.. हम भी अपने विद्यार्थी जीवन में चतुर, होशियार बने और जागरूक होकर कार्य को सफल बनाने का प्रयास करें..।
*वको ध्यानम्* वक याने बगुला अर्थात बगुले की तरह एकाग्र होकर, अपने चित को ध्यान मुद्रा में रखकर पढ़ाई करें कहने का मतलब जैसे बगुला अपने भोजन की तलाश में तालाब, नदी-नाले, झील-झरोखे पर शिकार करता है तो बहुत ही ध्यान मुद्रा के साथ अपने एक पैर को नीचे एवं दूसरे पैर को ऊपर उठाकर एकाग्र हो जाते हैं जैसे ही आहट सुनाई पड़ता है वैसे ही अपने उठाए हुए पंजा को तुरंत मछली पर दबा देते हैं और चोंच मार कर आहार के रुप में ग्रहण करते हैं और आत्म संतुष्टि का एहसास करते हैं । ऐसे ही विद्यार्थी जीवन भी है जब भी ज्ञान अर्जन करने की बात आती है तो बहुत ही हो हल्ला-गुल्ला, शोरगुल से निवृत होकर अपने विवेक अनुसार ज्ञान अर्जन करते हुए अच्छे अंक की प्राप्ति कर लेते हैं .. और यही भी सफलता का मूल मंत्र है।
सफलता की तीसरा मूल मंत्र पर *श्वाननिद्रा* पर व्याख्यान करते हुए कहा श्वान अर्थात् कुत्ता। कुत्ते की तरह हल्की नींद लेना याने जरा-सा अवसर मिलते ही जाग जाना। सोने का भाव यह है की कुत्ता की तरह वफादार बनो और स्वयं जागकर अपने वफादारी से घर-मालिक को जगाओ.. ऐसी ही विद्यार्थी जीवन में भी जागते हुए सोना है तभी आप अपने जीवन में विकास के मार्ग को प्रशस्त कर सकते हैं और भारत की मिसाइल मैन डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बातों को भरी सभा में कहा *सपने वो नहीं होते हैं जो आप सो कर देखते हैं सपने तो वो होते हैं जो अपने को सोने नहीं देते।*
*सोने से सोना नहीं मिलता है।*
*जागने से ही सोना मिलता है।।*
यदि जीवन में सपने को साकार करना है कुछ पाना चाहते हैं मंजिल की ओर निरंतर बढ़ाना चाहते हैं तो हमेशा जागृत अवस्था में कार्य करें । तभी सफलता रुपी उस उत्कृष्ट धातु सोना को प्राप्त करेंगे अर्थात् अपने जीवन को सँवार पाएंगे । विद्यार्थी जीवन में ही तमाम बातें वेद, उपनिषद, पुराण, आदि महाकाव्य, पुस्तकालय में नैतिक भरी कहानियाँ जो जीवन को संवारने में काम आए ऐसे धर्म ग्रंथ की यथार्थ बातें सिखाए और बतलाई जाएँ, ताकि घर परिवार को संस्कारवान बना सकें।
विद्यार्थी जीवन का चौथा सफल मूल मंत्र बताया कि *कम खाओ गम खाओ* अर्थात् *अल्पाहारी* बनो अल्पहारी का भाव थोड़ा भोजन करना, ताकि आलस्य न आए। संस्कृत में कहा गया है कि
*आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।*
*नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥*
आलस्य ही मनुष्य के शरीर में ही छिपा हुआ सबसे बड़ा शत्रु और बैरी है.. सबसे बड़ा छुपे रुस्तम दुश्मन है.. आलसी को दूर करना है तो हमें नित निरंतर लग्न के साथ मेहनत करना होगा। परिश्रम करना होगा तभी हम कह सकते हैं परिश्रम (उद्यम) से बढ़कर कोई दूसरा मित्र नहीं है। अच्छी लगन और सोंच के साथ मेहनत करना ही हमारे सच्ची मित्रता है जो जीवन को नए आयामों के साथ आगे बढ़ाती है।
जो मनुष्य परिश्रम करता है, वह कभी भी दुखी या पतित नहीं होता। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की जरूरत तो नितांत आवश्यक है पर इतना अधिक भोजन भी ना करें कि श्रम से तकलीफ या अन्य बीमारियों को जन्म दे। इसलिए विद्यार्थी जीवन में आहार की मात्रा कम करते हुए अपनी उस चरमोत्कर्ष मंजिल पर पहुंचने का प्रयास करें।
पांँचवा और अंतिम मूल मंत्र है.. *गृहत्यागी* अर्थात घर के कामों से निवृत होकर स्वाध्याय के समय में घर-परिवार की आसक्ति छोड़कर शिक्षा में लगे रहना।
इस तरह से एक आदर्श विद्यार्थी के जीवन में सफलता कैसे हासिल की जाती है श्लोक वाचन करते हुए सारगर्भित विचारों को रखने का प्रयास किया कि कौवे की तरह प्रयत्नशील, बगुले की तरह ध्यानमग्न, कुत्ते की तरह सतर्क, कम भोजन करने वाला और घर-परिवार की मोह-माया छोड़कर शिक्षा में एकाग्र रहने वाला विद्यार्थी ही सफलता की उच्च शिखर को प्राप्त करता है।
दूसरी बात आज के आधुनिकता पर एक मनुस्मृति अंकित श्लोक... जैसे गुढ़ार्थ बातों को चरितार्थ करते हुए कहा -
भारतीय पश्चिमी सभ्यता को अपनाने के कारण आज का परिवेश भारतीय सभ्यता व संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। इस पर अपनी बात रखने का प्रयास किया कि....
*अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।*
*चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।*
बहुत ही सुन्दर संस्कृत का यह श्लोक हमारे जीवन पर चरितार्थ करता है जो विद्यार्थियों में संस्कार एवं बड़ों के सम्मान का भाव मानवीय समाज में होना चाहिए इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के आधुनिकता में लोग पश्चिम सभ्यता को ज्यादातर अनुसरण और अनुकरण करते हैं और भारतीय संस्कृति विलोपित होती जा रही है और आज भारतीय समाज जो हमारे भारत देश में जन्मी हुई संस्कृतियाँ है जैसे - रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा , मान-सम्मान, धर्मग्रंथ की वाणी, ऋषि-मुनियों की स्मृति, आदि को भूलते विकृतियाँ को जन्म दे रहे हैं। संस्कृत भाषा के सारगर्भित विचारों को श्लोक वाचन के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना और लोगों को सद्मार्ग तक ले जाना हम मानव समाज का कर्तव्य बनता है यदि ऐसा नहीं करते हैं । आज के पढ़े लिखे युवा विद्यार्थी ही देश की बागडोर को संभालती है शिक्षा की जड़े को मजबूती से प्रदान करती है इसलिए शिक्षा हमारे जीवन का आधार है हम शिक्षित होकर समाज के जन-कल्याण में कारज करें ...बड़ों का मान-सम्मान करें.. अभिवादन करें ... इस तरह। सुभाषित कुछ श्लोकों के भाव को बताने का बहुत सुंदर प्रयास किया गया।
*अभिवादनशीलस्य नित्यम् वृद्धोपसेविनः* जिस विद्यार्थी में सदैव प्रणाम व नित्य अभिवादन करने का अभ्यास होता है ; मान-सम्मान करने का स्वभाव होता है शील होता है.. मानव धर्म को विचार पर करता है; आत्म चिंतन करता है वह हमेशा चँहुदिशि विकास की ओर हमेशा अग्रसर होता है और जो बड़ों की सेवा नित्य प्रतिदिन, देख-देख करता है समयानुसार सेवाभाव में डूबा रहता है वह परिवार हमेशा तरक्की के मार्ग को प्रशस्त करता है।
दूसरी लाइन पर विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि
*चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।*
उसके घर परिवार में आदर्श व्यवहार के कारण चार प्रकार की बढ़ोतरी होती है वह है आयु (लंबी उम्र), ज्ञान(विवेक)
यश अर्थात् कीर्ति/सम्मान बल मतलब शक्ति (ऊर्जा) पूरे श्लोक के पंक्तियों पर भाव यह है कि जो व्यक्ति सदैव बड़ों को नमस्कार करता है; आदर करता है; और बड़े-बुजुर्गों की सेवा हमेशा करता है; मान सम्मान करता है। सुबह-शाम दीप प्रज्वलित कर भारतीय संस्कृति का समर्थन करते हैं उसके जीवन में चार चीज़ें बढ़ती हैं वह है आयु, विद्या, यश और बल।
उपरोक्त श्लोक का वाचन करते हुए जो शिक्षा मिलती है अपने जीवन में आत्मसात करें हमेशा समय के अनुसार साहित्य का स्वाध्याय करें। साहित्य पढ़कर ही अच्छे बातों को अपने जीवन में ग्रहण करें। संस्कारित परिवार ही हमें जीवन जीने की सीख बताती है जीवन में दुर्व्यसन में ना पड़ें, नशा मुक्त होकर अपने जीवन को संयमित बनाएंँ और हमेशा अपने से बड़ों का सम्मान करते हुए अपने से छोटे का भी प्रेम स्नेह भरी बातों से छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से आत्मसात कराते हुए हमेशा जन-सेवा भाव, देश हित में कल्याण का भाव, बड़े बुजुर्गों की सेवा करने का भाव, सतत् निरंतर स्वभाव को अपने जीवन में आदत के रूप में आभूषित करने का प्रयास करें और यही जीवन का सार है। सूक्तियों से भरी आदर्श वाक्य ही जीवन में परिवर्तन ला देती है अच्छे बातों को आत्मसात करने से सफलता, ज्ञान और कीर्ति प्राप्त होती है। अतः अपने जीवन में संयमित व नियंत्रित होकर देश सेवा करें। ऐसे गुढ़ार्थ बातों को संस्कृत भाषा सप्ताह दिवस पर जीवन की कुछ यथार्थ बातों को रखने का प्रयास किया।