*गर्मी की छुट्टी में बच्चे घूम रहे ननिहालों के घर, गांवों में आज भी सगा जाने की परंपरा कायम*

*गर्मी की छुट्टी में बच्चे घूम रहे ननिहालों के घर, गांवों में आज भी सगा जाने की परंपरा कायम*

*गर्मी की छुट्टी में बच्चे घूम रहे ननिहालों के घर, गांवों में आज भी सगा जाने की परंपरा कायम*

*गर्मी की छुट्टी में बच्चे घूम रहे ननिहालों के घर, गांवों में आज भी सगा जाने की परंपरा कायम* 

गर्मी की छुट्टियों का नाम आते ही बच्चों के चेहरों पर एक अलग ही चमक आ जाती है। पढ़ाई के तनाव और स्कूल की दिनचर्या से दूर, यह समय होता है बेफिक्र होकर मस्ती करने और अपने अपनों के साथ यादगार पल बिताने का। शहरों के बच्चों के लिए यह छुट्टियाँ खासकर इसलिए भी यादगार होती हैं क्योंकि वे इस समय का अधिकांश हिस्सा अपने ननिहालों में बिताते हैं। इस वर्ष भी हजारों बच्चे अपने माता-पिता के साथ या अकेले ननिहालों की ओर रवाना हो चुके हैं। गांवों की मिट्टी, तालाब, बगीचे, आम के पेड़ और दादी-नानी के हाथ का बना हुआ स्वादिष्ट खाना – ये सब बच्चों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं होता।ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ननिहाल जाना केवल एक पारिवारिक रिवाज नहीं, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है। नानी-नाना के घर की स्नेहिल गोद,



कहानियों की महक और पारंपरिक खेलों की दुनिया बच्चों के मन में लंबे समय तक अपनी छाप छोड़ती है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि ननिहाल जाना बच्चों के सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह न केवल बच्चों को परिवार के बड़े-बुजुर्गों के साथ जोड़ता है, बल्कि उन्हें अपनी जड़ों और सांस्कृतिक विरासत से भी रूबरू कराता है।शहरों की भागदौड़ भरी ज़िंदगी और आधुनिक तकनीकों के बीच जब बच्चे गांव की खुली हवा में सांस लेते हैं, खेतों में दौड़ते हैं, और दादी-नानी की कहानियों में खो जाते हैं, तो वह अनुभव उनके जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक बन जाता है। यह देखकर संतोष होता है कि आज भी ननिहालों में गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने की परंपरा जीवित है। यह केवल एक पारिवारिक यात्रा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम भी है।

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