हस्ताक्षर साहित्य समिति ने मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती मनाई...
साहित्य राजमहल नहीं है, यह आवाजों की बस्ती है यह मानना था मुंशी प्रेमचंद का
दल्लीराजहरा 2 अगस्त। नगर की सबसे पुरानी ख्यातिलब्ध संस्था हस्ताक्षर साहित्यिक समिति द्वारा गत 31 जुलाई को महान उपन्यासकार महान कहानीकार,एवं विचारक मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती मनाई और इस मौके पर उनके साहित्य के क्षेत्र में दिए गए योगदान को याद किया गया। निषाद समाज के भवन में आयोजित उक्त कार्यक्रम की मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार शिरोमणि माथुर एवं अध्यक्षता संतोष ठाकुर ने की विशेष अतिथि सुश्री सरिता गौतम उपस्थित थी।कार्यक्रम के दौरान कविता पाठ किया गया। साथ ही अंत मे सदी के महान गायक मो. रफी को उनकी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
हस्ताक्षर साहित्य समिति के सदस्य नगर में पिछले चार दशक से सक्रिय भूमिका निभाते हुए साहित्य सेवा में लगे हुए है। महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शिरोमणि माथुर ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद कलम के सिपाही थे।उनकी रचना साहित्य इतिहास की धरोहर है। उन्होंने प्रेमचंद जी की रचना गबन , कर्मभूमि,निर्मला को कालजयी बताया ।वरिष्ठ रचनाधर्मी जे आर महिलांगे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रेमचंद जी की रचनाओं को उस समय की परिस्थितियों,परिवेश संस्कृति का पुट मिलता है,जो आज भी प्रासांगिक है।उनकी विश्वप्रसिद्ध रचना गोदान पर प्रकाश डाला।
समिति के अध्यक्ष संतोष ठाकुर ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी की रचनाएं ग्रामीण परिवेश को आधार बना कर लिखी गई हैं। प्रेमचंद जी उच्च कोटि के साहित्यकार रहे हैं।उनकी रचनाओं में भारत की झलक दिखती है। कार्यक्रम की विशेष अतिथि सुश्री सरिता गौतम मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मुंशीजी के साहित्य का महत्व इसलिए है कि यह रूढ़ियों और बंधनों से मुक्त करता है। प्रेमचंद जी का लेखन परिवार, राष्ट्र और वैश्विकता का सहीं अर्थ बताता है।
सुश्री गौतम ने आगे कहा कि मुंशी जी के शब्दों में साहित्य राजमहल नहीं है,यह आवाजों की बस्ती है। "सच्चाई की ताकत से बड़ा कोई बल नहीं होता"। इन्ही विचारों के जरिये मुंशी प्रेमचंद जी ने विश्व स्तर पर साहित्य प्रेमियों के लिए मार्गदर्शक का काम किया है।जिसकी कोई सानी नही है।
विचार गोष्ठी उपरांत कविता पाठ में अमित सिन्हा ने वर्षा ऋतु का मनोहर चित्रण अपनी कविता के माध्यम से किया-
उमड़ घुमड़ बरसे रे बादल
घुमड़ घुमड़ बरसे,
धरती का भीगा आंचल,प्रेमसुधा बरसे।
आनंद बोरकर की रचना ने सबका मन मोह लिया- तेरे इश्क़ में जलता हुआ चिराग हूं मैं,तेरी मंजिल का नया आगाज़ हूं मैं।
शमीम सिद्दिकी की हृदय की वेदना पर सुंदर कविता के अंश-
धीमी है आग जरा और सुलगाइए
फिर वेदना की भस्म पर धूनी रमाईए
घायल हैं शब्द और भटके हुए हैं शब्द
अब मानेगा कौन,और किसे
समझाइए
मनोज पाटिल ने श्रीराम को भारतीय जन मानस के राम के रूप में चित्रित करते हुए सत्ता के गलियारों तक पहुंचाया।
घनश्याम पारकर की आज की स्थिति पर सशक्त रचना ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया - ददा दाईं के चोला तरसे,तीरथ धाम नई पाय,
खरतरिहा ओकर बेटा,हाडा ल गंगा ले जाय,
जियत म खाय बर नइ पूछे,मरे म पंगत खवाय
तामसिंह पारकर की सावन पर रचना इस प्रकार रही-
सावन आगे झूम के रिमझिम चले फूहार
उमड़ घुमड़ आवय घटा ,बरसे मूसलाधार
अमित प्रखर नकी शासन पर प्रहार करती रचना - गरीबों के निवालों को क्यूं शासन खा जाते है,
जो कुछ बचता है, झूठे आश्वासन खा जाते हैं सुना कर वाहवाही बटोरी।
आचार्य महिलांगे ने सुंदर रचना का पाठ किया-
अपने स्वधर्म का ही बोध हो,
जीवन को नित नया बनाने,
दृढ़ संकल्प महानता का हो
अभिनव राग को अपनाएं।
शिरोमणि माथुर ने सावन और उससे जुड़े तीज त्योहार का वर्णन इस प्रकार किया-
प्रकृति पहनती हरित वस्त्र बहुविधी भूषणम
भांति,भांति पकवान है,बहु बेटियां मोह
सजता मंडप प्रेम का,सबकी अपनी रीत,
किसकी प्रभु में प्रीत है,कुछ की गति विपरीत।
संतोष ठाकुर 'सरल' ने श्री सीता जी महिमा पर भावभरा गीत सुनाया-
राम जी भगवान हैं,भगवती हैं जानकी
जो मान बढ़ाती हैं अग्नि धरा धाम की
मायका ससुराल में प्यार सभी ने दिया
मुश्किलों में साथ रहीं, परछाईं है राम की
संचालन ताम सिंह पारकर ने किया और आभार प्रदर्शन आनंद बोरकर द्वारा किया गया।
महान गायक मो.रफी को श्रद्धांजलि दी गई..
सदी के महान गायक मो.रफी ने 31 अगस्त 1980 को इस दुनियां से अलविदा कह गए।आवाज के जादूगर ने हर तरह के गीत गाए। फिल्मी कैरियर में उन्होंने 26 हजार से अधिक गानों में आवाज दी है।उनकी आवाज के बिना संगीत के इतिहास की कल्पना करना बेमानी होगा।हस्ताक्षर साहित्य समिति के सदस्यों ने महान गायक मो. रफी को याद करते हुए स्मरण किया कि वे इस दुनियां से अलविदा कहने के एक पखवाड़े पहले दल्लीराजहरा आये थे और अपनी आवाज को जादू बिखेरे थे।संभवतः उनकी यह यात्रा छत्तीसगढ़ की आखरी यात्रा थी। समिति के सदस्यों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

