अपनी सुंदरता के लिये मनुष्य ले रहा प्रकृति के सुंदरता की बलि - संत रामबालकदास
भगवान शिव ने अपने आभूषण के रुप में उन जीवों को स्थान दिया जिनसे मनुष्य दूरभागते हैं यह इस बात का प्रमाण है कि जिसका कोई नहीं उसका शिव है।
पाटेश्वरधाम के ऑनलाइन सतसंग में पुरूषोत्तम अग्रवाल की जिज्ञासा पर नागपंचमी के महत्व पर प्रकाश डालते हुये रामबालकदास ने कहा कि भगवान शिव हाथों में सर्पों का कंगन, गले में सर्पो की माला, सिर में सांपों की जटा बांधते हैं। यज्ञोपवीत के स्थान पर भी सर्प लटका
रहता है। कमर में भी व्याल चर्म का वर्णन आता है जो दर्शाता है कि नाग, भगवान शिव को कितने प्रिय हैं।
ऐसे नागों की नागपंचमी में केवल पूजा ही नहीं करनी
चाहिए बल्कि उनके रक्षण तथा संवर्धन का भी संकल्प करना चाहिए। हिंदू धर्म में प्रकृति पूजा का विशेष महत्व है। भगवान राम ने भी वनवास काल में साधना कर
रावण पर विजय प्राप्त की। नाग पूजा भी प्रकृति पूजा का अंग है। जीवों को संरक्षण देने ही नाग पूजा, गौ पूजा आदि की जाती है। जीवों को महत्व प्रदान करने ही गणेश ने मूसक, विष्णु ने गरूण, कार्तिक ने मोर, भवानी ने शेर, शिव में नंदी को अपना वाहन बनाया।
महाराज जी ने कहा नाग बहुत सुंदर जीव है। नाग भगवान शिव के गले में इसलिए सुशोभित है कि वह वहां स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। शिवजी को भी इससे गले में शीतलता मिलती है और उनके सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। जो शिव का श्रृंगार है वह हमारा शत्रु कैसे हो सकता है। बाबाजी ने बताया कि नाग योनि तब मिलती है जब मनुष्य अत्यधिक कृपण होता है। दान पुण्य नहीं करता हो अत्यधिक कटु शब्दों का प्रयोग करता हो तथा संकुचित रहता हो केवल अपना स्वार्थ सोचता हो। गरूढ़ पुराण के अनुसार ऐसे स्वभाव के लोगों को नाग योनि में जन्म लेना पड़ता है। जीव जंतु वास्तव में हमारे दुश्मन नहीं होते। सांप, बिच्छू, मधुमक्खी, ततैया आदि को जब छेड़ा जाए या धोखे से ही उन्हें नुकसान पहुचाया जाए तब वे आत्मरक्षा में अन्य जीवों पर आक्रमण करते हैं। बाबाजी ने इस बात पर दुख जताया कि राम, बुद्ध, महावीर के सत्य अहिंसा धर्म के पालक भारत देश में नागों की तस्करी की जाती है। एक सर्वे के अनुसार भारत से तीस हजार तथा विश्व से दो लाख नागों की प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं।
जीव जंतु कल्याण बोर्ड के आंकड़े के अनुसार विश्व में एक वर्ष के अंदर करीब दो से ढाई लाख सर्प चमड़े के व्यापार के लिये मार दिये जाते हैं। मनुष्य अपनी सुंदरता के लिये प्रकृति की सुंदरता की बलि चढ़ा रहा है। यदि हम चमड़ों के बेल्ट, पर्स, जूता, बैग आदि का त्याग करने का संकल्प लें तो हजारों जीव जंतुओं के प्राणों की रक्षा की जा सकती है। धरती में कीड़े मकोड़ों के नियंत्रण के लिये चूहे, चूहों के उतपात नियंत्रण के लिये सांप और सांपों के नियंत्रण के लिये मयूर की उत्पत्ति ईश्वर ने की है परंतु मनुष्य ने प्रकृति से छेड़छाड़ कर असंतुलन पैदा कर दिया है।